महिला WWE: सॉफ्ट पॉर्न से लेकर सलवार सूट वाली पहलवानों तक

जब हमारे घरों में केबल टीवी लगा, दूरदर्शन के शक्तिमान को एक नए क्रेज ने रिप्लेस कर दिया. ये WWE का दीवानापन था. अगर आपका कोई बड़ा भाई है, तो सावन में आज भी बिस्तर पर पटके जाने से उपजा दर्द हरा हो जाता होगा, है न? मगर ‘चोकस्लैम’ वाले वो दिन तब ख़त्म हुए जब पता चला कि ये सब एक्टिंग होती है. अंडरटेकर, योकोज़ूना और ट्रिपल एच जैसे लोग, जिनसे हमने अपने पर्सनल सुपरहीरो की तरह प्यार किया था. जेब खर्च बचा के जिनके कार्ड खरीदे थे, वो साले सब एक्टर थे. यहां दर्द हुआ था, यहां. दिल के बीचोबीच.

थोड़ा और बड़े हुए तो टीवी पर रात को लड़कियों का WWE दिखने लगा. छोटे कपड़े, डीप कट वाले, बिकिनी स्टाइल के कपड़ों में चीखती लड़कियां. कुछ वक़्त लगा समझने में कि ये कुश्ती असल में सॉफ्ट पॉर्न थी.
असल में WWE क्या है?
एक अमेरिकी एंटरटेनमेंट कंपनी है. जिसे अक्सर असल कुश्ती समझ के देखा जाता है. मगर WWE में दिखाया जाने वाला सबकुछ एक स्क्रिप्ट के तहत होता है. इसकी स्टोरीलाइन होती है. इसे बाकायदा कोरियोग्राफ किया जाता है. बल्कि इसमें किए गए एक्शन अगर ठीक तरह से परफॉर्म नहीं किए तो भयानक तरह की चोटें आ जाती हैं.

1965 में WWF (वोर्ल्स रेसलिंग फेडरेशन, जिसे अब वर्ल्ड रेसलिंग एंटरटेनमेंट कहते हैं) को प्रोमोट करने के लिए औरतों को लाया गया था. 17 साल पहले इसे WWE दीवास चैंपियनशिप से जोड़ दिया गया था. जाहिर सी बात है कि औरतों को ‘स्किन-शो’ के लिए लाया गया था. ताकि इसकी पब्लिसिटी हो सके.
इंडिया की किसी लड़की को WWE में नहीं देखा गया. लेकिन फिर कविता की एंट्री हुई. अब तक खली और जिंदर महल जैसे लोग टाइटल जीतते आए थे. शायद शो में छोटे कपड़े पहनने और एक्सपोज करने की वजह से कोई भारतीय लड़की इसमें हिस्सा नहीं लेती थी. लेकिन कविता देवी ने WWE में एक भारी बदलाव की नींव रखी. वो सलवार सूट पहनकर रिंग में उतरीं.
हरियाणा के एक गांव में पैदा हुईं. और फोगाट बहनों की तरह हर कदम पर समाज से लड़ना पड़ा. कविता ने भारोत्तोलन में अपनी जगह बनाई. कितनी कमाल की बात है, देश में प्रति हजार लड़कों पर सबसे कम लड़कियां जिस राज्य में हैं, वो ही सबसे ज्यादा महिला पहलवान भी भारत को देता आ रहा है. कविता ने साउथ एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता. खली के अंडर रेसलिंग की ट्रेनिंग ली.
महिला पहलवानों को कभी पुरुष पहलवानों के बराबर का दर्जा नहीं मिला. पुरुषों को रेसलर बुलाते हैं और औरतों को ‘दीवा’ यानी सुंदर औरत कहते हैं. औरतों से कुश्ती लड़वाने का एक ही मकसद था. वो वैसे भी छोटे कपड़े पहनकर आती थीं. उसके ऊपर वो एक दूसरे के कपड़े फाड़ भी देती हैं. फटते कपड़ों वाली लड़कियों को कौन नहीं देखेगा. खासकर तब, जब उनकी जांघें ‘टोन’ की गई हों, स्तन दिखाए गए हों और पर्याप्त मेकप हो. इससे WWE को लंबे समय तक प्रमोशन मिलता रहा.
कविता ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को बताया कि भारतीय लड़कियां टाइट कपड़े पहनकर कुश्ती खेलने में सहज महसूस नहीं करतीं. ऐसे में किसी एक लड़की के लिए बहुत जरूरी था कि बाहर निकलकर, रिंग में उतरकर कुश्ती के तयशुदा नियमों को तोड़ें. उन्हें ये जानना जरूरी है कि कपड़े उन्हें दुनिया के सामने अपना टैलेंट दिखाने में बाधा नहीं बन सकते. कविता का इस तरह सलवार कमीज़ पहन रिंग में उतरना न सिर्फ इस सोच को चुनौती देता है कि किसी चीज को प्रमोट करने के लिए औरतों की चमड़ी दिखाने की जरूरत है, बल्कि भारतीय औरतों को रिंग में आने के लिए इंस्पायर करती है.
खेलों में औरतों के कपड़ों को लेकर उनकी खुद की और कभी दुनिया की असहजता कोई नई बात नहीं है. खासकर उन औरतों के लिए जो धार्मिक वजहों से ख़ास तरह के कपड़े पहनती हैं. हिजाब पहनने वाली औरतें 2014 तक फुटबॉल नहीं खेल सकती थीं. मगर अंततः फीफा ने ये बैन हटाया. बल्कि नाइकी कंपनी ने 2016 में ‘प्रो हिजाब’ नाम की ड्रेस भी निकाली, हिजाब पहनने वाली औरतों के लिए.
पहले नंगापन, फिर सूट. चक्कर क्या है?
WWE का क्रेज जिस तरह बढ़ा, उसी तरह घटने भी लगा. जब टीवी ही एंटरटेनमेंट का सबसे बड़ा माध्यम था तब टीवी चैनलों के लिए जरूरी था कि देखने वालों को वो स्क्रीन से चिपकाकर रखें. मगर हर चीज की उम्र होती है और WWE का क्रेज भी गिर गया. अब लड़कियों की चमड़ी देखने और अपनी कामुकता की खुराक के लिए लोगों को टीवी पर कुश्ती लड़ती लड़कियों या एफ टीवी देखने की जरूरत नहीं है. इंटरनेट पर पर्याप्त मात्रा में न्यूडिटी और पोर्नोग्राफी उपलब्ध है.

एक समय स्टार रह चुके अंडरटेकर और ट्रिपल एच बुढ़ाने लगे. लोगों की रुचि गिरती गई. अंडरटेकर तो मरकर ज़िंदा भी हुआ. बड़े बड़े स्टार्स की वापसी हुई. मगर WWE का खोया हुआ जादू वापस नहीं लौटा.
इंडिया में पुनर्जन्म 
ऐसे में देश-दुनिया के दर्शकों को आकर्षित करने के लिए खली और कविता जैसे लोगों को रिंग में उतारना मार्केटिंग का सबसे अच्छा जरिया है. हम खुद को देखें तो हमारा WWE देखने का ग्राफ़ पहले तो गिरा लेकिन खली के आने पर वो वापस उठा. उसने रिंग में हाथों से दबाकर बास्केटबॉल फोड़ दी थी. उसने आते ही अंडरटेकर को हरा दिया था. ये सब देखकर अच्छा लगता था कि कोई इंडियन पहुंचा है वहां जिसके नख से लेकर शिख में ताकत भरी थी.
इंडिया में WWE का पुनर्जन्म हुआ था. अब यही काम कविता के ज़रिए करवाया जा सकता है. ये WWE के बिज़नेस के लिए एक अच्छा मूव हो सकता है. देशभक्ति और देश के संस्कारों की भक्ति का बढ़िया छौंका, विदेशी रिंग में. TNA रेसलिंग में भी जब संजय दत्त नाम का एक रेसलर पहुंचा था तो उसे भी इसी हाइप के साथ इंडियन दर्शकों ने स्वीकारा था और TNA खासा पॉपुलर हुआ था. लेकिन फिर वो संजय दत्त के गायब होने के साथ-साथ टीवी से गायब हो गया.
बीते दिनों इंडिया के दर्शकों में कुश्ती, पहलवानी और भारोत्तोलन के प्रति रुचि लौटी है. अब लोग इसे महज पौरुष से नहीं जोड़ते. अब इसे एक ऐसा खेल मानने लगे हैं जिसमें औरत और पुरुष बराबरी से हिस्सा लेते हैं, मेडल लेते हैं. WWE को वापस लाने की भरसक कोशिश शायद इसी तरह सफल हो पाए.

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